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Saturday, March 25, 2017

➡सरकारी स्कूलों में नहीं बन सका पढ़ाई का वातावरण *

उत्तर प्रदेश। शासन व प्रशासन के लाख प्रयासों के बावजूद जिलो के अधिकांश परिषदीय प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ाई का वातावरण नहीं बन पा रहा है। विद्यालयों में पढ़ाई को छोड़कर सब कुछ हो रहा है। पढ़ाई के लिए कोई गंभीर नहीं है। ज्ञात हो कि सरकार द्वारा निशुल्क पाठ्य पुस्तकें व स्कूल ड्रेस छात्र-छात्राओं को उपलब्ध कराया जा रहा है, दोपहर में विद्यालयों में भोजन भी दिया जाता है, फिर भी अभिभावक अपने बच्चों को प्राथमिक विद्यालयों में नहीं भेजना चाह रहे है जबकि वहां तैनात शिक्षक उच्च शिक्षित हैं। यहां तक कि परिषदीय विद्यालयों के अधिकांश अध्यापक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। ऐसा क्यों हो रहा है, यह शासन-प्रशासन में बैठे सभी जिम्मेदार लोग जानते हैं, फिर भी उचित कार्यवाही नहीं हो पा रही है। एक तरफ शिक्षकों का तर्क है कि गैर शैक्षणिक कार्य जब तक शिक्षकों से सरकार कराएगी, पढ़ाई का वातावरण बनाने में कठिनाई होगी जबकि अभिभावकों का आरोप है कि भारी-भरकम वेतन पाने के बावजूद अधिकारियों के मिली भगत से अध्यापक स्कूल में जाकर पढ़ाने से कतराते हैं।जमीनी हकीकत पर नजर डाले तो देखने को मिला बेशिक शिक्षा विभाग राजनीति का अड्डा बन भ्रष्टाचारियों के आगोश में हैं बीआरसी पर दबंगों का कब्जा सदियों से चला आ रहा और राजनीति की रोटियां सेकीं जा रहीं हैं अधिकारीयों के अगुवाई में अपनी-अपनी विद्यालय छोड़ अध्यापक शिक्षा का नींव ध्वस्त कर रहे हैं। तथा सरकार ने बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए प्रेरको को प्राइमरी स्कूलो में व आंगनवाड़ी केंद्रों को बनाया गया हुआ है। लेकिन अल्हागंज क्षेत्र के कुछ विद्यालयो में प्रधान व प्रधानाचार्य की मिली भगति से प्रेरक स्कूल आने में शर्म महशुश कर रहे है।
तो इधर आँगनबाड़ी कार्यकत्री अपनी मनमानी करने में लगी हुई है। बच्चो का पोषा आहार (पंजीरी) 250 रुपये प्रति पैकट बेचन कर अपनी जेब गर्म करती है। इन आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों का कहना है कि सरकार द्वारा हमे 3200 रुपये महीना मिलता है।
3200 रुपये में कुछ नही होता कुछ न कुछ करना पड़ेगा।

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