गैंग बनते देखकर ..... दिया कबीरा रोय
मिर्जापुर - भक्तिकाल को क्या सूझा कि वह 'छद्मकाल' में आ टपका । तारीख 30 मई की थी । दुपट्टे में लिपटा छद्म खूब प्रभाव दिखा रहा था । कोई दुपट्टा ओढ़ाकर अच्छों अच्छों को ठग रहा था और कोई दुपट्टे के नाम दो-पट के अनुसार अपने दोहरे सोच-विचार को संतुष्टि देता हुआ लग रहा था ।
संगठन कहें या गिरोह ?
कोई भी बौद्धिक ही नहीं मूर्खों का भी संगठन होता है तो उसकी मासिक से लेकर त्रैमासिक बैठक अनिवार्य होती है । लेकिन न बैठक न प्लानिंग, शुरू हो गया सम्मान, महिमामंडन का अनुष्ठान । किसे क्यों सम्मानित करना है, किसी को पता नहीं । क्योंकि सम्मान के वक्त सम्मानित होने वाले के उल्लेखनीय कार्यों का जिक्र आवश्यक है लेकिन किसी राजनीतिक सभा में भीड़ जुटाने की तरह सम्मानित करने वालों की भीड़ की तलाश हुई । कारण कि इसी से साल भर के लिए कटोरा भरने की योजना क्रियान्वित होनी है ।
हमरी न मानो भैया, सिपहिया से पूछो
दुपट्टा पाने वाले भी किसी बहुरुपिए से कम नहीं दिखे । इसे पाने के लिए जोड़-तोड़ में लगे भी रहे और जब लह गया तब 'अरे क्या बताएं, हम तो चाहते नहीं थे, हमें जबरी दे दिया गया । हमरी न मानो 'पाकीजा' फ़िल्म के सिपहिया से पूछो की स्टाइल में आप खुद ही जाकर पता कर लीजिए कि हमें सरेराह पकड़कर लाया गया है जबकि हम तो जन्मते ही सम्मानित हो चुके हैं, क्या करेंगे उपट्टा-दुपट्टा लेकर ।
कौन न मर जाए इस अदा पर
सम्मानित करने वाले उसी दिन से एहसान का ढिढोरा पीट रहे हैं तो पाने वाले का यह स्टाइल की जबरी दे दिया गया । इस पर कौन नहीं फिदा हो जाएगा । लगता है कि जबरी पकड़कर मंच पर ले जाया गया और गले में दुपट्टा नहीं जैसे फांसी का फंदा डाल दिया गया ।
मामले को लेकर आग लगी है
30 मई के छद्म-नदी के तट पर खड़े भक्तिकाल के कबीर, जिनकी जयंती ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को है, रोते हुए दिखे तो कबीरा गाने वालों के बीच आग लगी है, जिसकी तपिश मौसम की तपिश से अधिक है ।
रिपोर्ट विकास चन्द्र अग्रहरि ibn24x7news मीरजापुर
मिर्जापुर - भक्तिकाल को क्या सूझा कि वह 'छद्मकाल' में आ टपका । तारीख 30 मई की थी । दुपट्टे में लिपटा छद्म खूब प्रभाव दिखा रहा था । कोई दुपट्टा ओढ़ाकर अच्छों अच्छों को ठग रहा था और कोई दुपट्टे के नाम दो-पट के अनुसार अपने दोहरे सोच-विचार को संतुष्टि देता हुआ लग रहा था ।
संगठन कहें या गिरोह ?
कोई भी बौद्धिक ही नहीं मूर्खों का भी संगठन होता है तो उसकी मासिक से लेकर त्रैमासिक बैठक अनिवार्य होती है । लेकिन न बैठक न प्लानिंग, शुरू हो गया सम्मान, महिमामंडन का अनुष्ठान । किसे क्यों सम्मानित करना है, किसी को पता नहीं । क्योंकि सम्मान के वक्त सम्मानित होने वाले के उल्लेखनीय कार्यों का जिक्र आवश्यक है लेकिन किसी राजनीतिक सभा में भीड़ जुटाने की तरह सम्मानित करने वालों की भीड़ की तलाश हुई । कारण कि इसी से साल भर के लिए कटोरा भरने की योजना क्रियान्वित होनी है ।
हमरी न मानो भैया, सिपहिया से पूछो
दुपट्टा पाने वाले भी किसी बहुरुपिए से कम नहीं दिखे । इसे पाने के लिए जोड़-तोड़ में लगे भी रहे और जब लह गया तब 'अरे क्या बताएं, हम तो चाहते नहीं थे, हमें जबरी दे दिया गया । हमरी न मानो 'पाकीजा' फ़िल्म के सिपहिया से पूछो की स्टाइल में आप खुद ही जाकर पता कर लीजिए कि हमें सरेराह पकड़कर लाया गया है जबकि हम तो जन्मते ही सम्मानित हो चुके हैं, क्या करेंगे उपट्टा-दुपट्टा लेकर ।
कौन न मर जाए इस अदा पर
सम्मानित करने वाले उसी दिन से एहसान का ढिढोरा पीट रहे हैं तो पाने वाले का यह स्टाइल की जबरी दे दिया गया । इस पर कौन नहीं फिदा हो जाएगा । लगता है कि जबरी पकड़कर मंच पर ले जाया गया और गले में दुपट्टा नहीं जैसे फांसी का फंदा डाल दिया गया ।
मामले को लेकर आग लगी है
30 मई के छद्म-नदी के तट पर खड़े भक्तिकाल के कबीर, जिनकी जयंती ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को है, रोते हुए दिखे तो कबीरा गाने वालों के बीच आग लगी है, जिसकी तपिश मौसम की तपिश से अधिक है ।
रिपोर्ट विकास चन्द्र अग्रहरि ibn24x7news मीरजापुर
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