रिपोर्ट विमल कुमार दूबे ibn24x7news
सुल्तानपुर
सुलतानपुर। हत्या के प्रयास के मामले में जेल में निरूद्ध आरोपी को पुलिस ने उसके साथी के साथ गिरफ्तारी दर्शाते हुए लूट की वारदात में मुल्जिम बना दिया। पुलिस ने दोनों आरोपियों के पास से देशी पिस्टल व तमंचे आदि की बरामदगी दर्शाते हुए अपनी पीठ भी थपथपाई। इसी मामले में आरोपियों की तरफ से प्रस्तुत जमानत अर्जी को एडीजे षष्ठम जमाल
मसूद अब्बासी ने आरोप संदिग्ध मानते हुए स्वीकार कर लिया है और पुलिसिया कार्यवाही पर कड़ी टिप्पणी करते हुए एसपी को उचित कार्यवाही के सम्बंध में आदेशित भी किया है।
मामला लम्भुआ थाना क्षेत्र से जुड़ा है। जहां पर स्थित शिवगढ़-हरिहरपुर मार्ग पर बीते 6 मई की शाम को हुई घटना का जिक्र करते हुए भूपेन्द्र कुमार निवासी पन्नाटिकरी-कोतवाली देहात ने दो अज्ञात बाइक सवारो के खिलाफ तीस हजार रूपए व मोबाइल लूट का मुकदमा दर्ज कराया। मामले के विवेचक ताराचंद्र पटेल ने मुखबिर की सूचना पर आरोपी आशुतोष तिवारी व जंगबहादुर निवासीगण अभियाकला-कोतवाली देहात की गिरफ्तारी बीते 24 सितम्बर को दर्शाते हुए उनके पास से देशी पिस्टल व तमंचे आदि की भी बरामदगी बतायी। दोनों आरोपियों के जरिए पुलिस ने भूपेन्द्र के साथ हुई लूट की वारदात को भी अंजाम देने के बावत इकबाले जुर्म करने का तथ्य पेश किया। इसी मामले में दोनों आरोपी तब से जिला कारागार में निरूद्ध है। आरोपी आशुतोष व जंगबहादुर की तरफ से एडीजे षष्ठम की अदालत में प्रस्तुत जमानत अर्जी पर सुनवाई चली। इस दौरान बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने पुुलिस के खुलासे को फर्जी एवं मनगढ़ंत बताते हुए आरोपी आशुतोष तिवारी को 25 मार्च से बीते 14 जून तक जानलेवा हमले के एक अन्य मामले में जेल में निरूद्ध होने का तर्क रखा एवं साक्ष्य भी पेश किया। ऐसे में इस बीच छः मई की घटना में आशुतोष को शामिल होने के तर्क को ही गलत ठहराया। बचाव पक्ष ने इसी आधार पर जंग बहादुर पर लगे आरोपों को भी निराधार बताया। उभय पक्षों को सुनने के पश्चात सत्र न्यायाधीश जमाल मसूद अब्बासी ने पुलिस की कहानी को संदिग्ध मानते हुए दोनो आरोपियों की जमानत अर्जी स्वीकार कर ली है और पुलिस की इस बड़ी गलती पर कड़ा रूख अपनाते हुए उचित कार्यवाही के लिए पुलिस अधीक्षक को भी आदेश की प्रति भेजकर कृत कार्यवाही से कोर्ट को अवगत कराने का भी निर्देश दिया है।
तो ऐसे ही झूठे खुलासे करती है पुलिस!
लम्भुआ थाने में तैनात दरोगा ताराचंद्र पटेल ने जेल में निरूद्ध रहने के दौरान भी आरोपी आशुतोष तिवारी के जरिए अपने साथी के साथ मिलकर लूट की वारदात को अंजाम देने की कहानी तैयार कर ली और उसे जेल भी भेज दिया। गलत खुलासा कर अपनी पीठ थपथपाने के चक्कर में दरोगा जी यह भी भूल गए कि जिस तारीख की घटना में आशुतोष को मुल्जिम बनाया जा रहा है। उस समय वह तो जेल में निरूद्ध था। तो ऐसे में क्या जेल प्रशासन ने बगैर जमानत हुए ही आशुतोष को लूट करने की इजाजत दे दी और दबे पांव जेल में फिर दााखिल कर लिया या फिर दरोगा ताराचंद्र पटेल किसी के दबाव अथवा अपना सम्बंध निभाने के चक्कर में यह खुलासा ही गलत किए है। ऐसे में पुलिसिया कार्यशैली पर कई अहम सवाल खड़े हो रहे है और अपने अधीनस्थों पर कड़ी नजर रखने का दावा करने वाले जिले के आका की कार्यशैली भी उजागर हो रही है। न जाने कितने मामलों में पुलिस ऐसे खेल-खेलती होगी और निर्दोषों को जेल भेजकर अपनी कार्यवाही से इतिश्री कर लेती होगी। ऐसे में क्राइम कन्ट्रोलिंग पर बड़े-बड़े दावे करने वाली भाजपा सरकार में भी पुलिसिया कार्यवाही रामभरोसे ही दिख रही है।
सुल्तानपुर
सुलतानपुर। हत्या के प्रयास के मामले में जेल में निरूद्ध आरोपी को पुलिस ने उसके साथी के साथ गिरफ्तारी दर्शाते हुए लूट की वारदात में मुल्जिम बना दिया। पुलिस ने दोनों आरोपियों के पास से देशी पिस्टल व तमंचे आदि की बरामदगी दर्शाते हुए अपनी पीठ भी थपथपाई। इसी मामले में आरोपियों की तरफ से प्रस्तुत जमानत अर्जी को एडीजे षष्ठम जमाल
मसूद अब्बासी ने आरोप संदिग्ध मानते हुए स्वीकार कर लिया है और पुलिसिया कार्यवाही पर कड़ी टिप्पणी करते हुए एसपी को उचित कार्यवाही के सम्बंध में आदेशित भी किया है।
मामला लम्भुआ थाना क्षेत्र से जुड़ा है। जहां पर स्थित शिवगढ़-हरिहरपुर मार्ग पर बीते 6 मई की शाम को हुई घटना का जिक्र करते हुए भूपेन्द्र कुमार निवासी पन्नाटिकरी-कोतवाली देहात ने दो अज्ञात बाइक सवारो के खिलाफ तीस हजार रूपए व मोबाइल लूट का मुकदमा दर्ज कराया। मामले के विवेचक ताराचंद्र पटेल ने मुखबिर की सूचना पर आरोपी आशुतोष तिवारी व जंगबहादुर निवासीगण अभियाकला-कोतवाली देहात की गिरफ्तारी बीते 24 सितम्बर को दर्शाते हुए उनके पास से देशी पिस्टल व तमंचे आदि की भी बरामदगी बतायी। दोनों आरोपियों के जरिए पुलिस ने भूपेन्द्र के साथ हुई लूट की वारदात को भी अंजाम देने के बावत इकबाले जुर्म करने का तथ्य पेश किया। इसी मामले में दोनों आरोपी तब से जिला कारागार में निरूद्ध है। आरोपी आशुतोष व जंगबहादुर की तरफ से एडीजे षष्ठम की अदालत में प्रस्तुत जमानत अर्जी पर सुनवाई चली। इस दौरान बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने पुुलिस के खुलासे को फर्जी एवं मनगढ़ंत बताते हुए आरोपी आशुतोष तिवारी को 25 मार्च से बीते 14 जून तक जानलेवा हमले के एक अन्य मामले में जेल में निरूद्ध होने का तर्क रखा एवं साक्ष्य भी पेश किया। ऐसे में इस बीच छः मई की घटना में आशुतोष को शामिल होने के तर्क को ही गलत ठहराया। बचाव पक्ष ने इसी आधार पर जंग बहादुर पर लगे आरोपों को भी निराधार बताया। उभय पक्षों को सुनने के पश्चात सत्र न्यायाधीश जमाल मसूद अब्बासी ने पुलिस की कहानी को संदिग्ध मानते हुए दोनो आरोपियों की जमानत अर्जी स्वीकार कर ली है और पुलिस की इस बड़ी गलती पर कड़ा रूख अपनाते हुए उचित कार्यवाही के लिए पुलिस अधीक्षक को भी आदेश की प्रति भेजकर कृत कार्यवाही से कोर्ट को अवगत कराने का भी निर्देश दिया है।
तो ऐसे ही झूठे खुलासे करती है पुलिस!
लम्भुआ थाने में तैनात दरोगा ताराचंद्र पटेल ने जेल में निरूद्ध रहने के दौरान भी आरोपी आशुतोष तिवारी के जरिए अपने साथी के साथ मिलकर लूट की वारदात को अंजाम देने की कहानी तैयार कर ली और उसे जेल भी भेज दिया। गलत खुलासा कर अपनी पीठ थपथपाने के चक्कर में दरोगा जी यह भी भूल गए कि जिस तारीख की घटना में आशुतोष को मुल्जिम बनाया जा रहा है। उस समय वह तो जेल में निरूद्ध था। तो ऐसे में क्या जेल प्रशासन ने बगैर जमानत हुए ही आशुतोष को लूट करने की इजाजत दे दी और दबे पांव जेल में फिर दााखिल कर लिया या फिर दरोगा ताराचंद्र पटेल किसी के दबाव अथवा अपना सम्बंध निभाने के चक्कर में यह खुलासा ही गलत किए है। ऐसे में पुलिसिया कार्यशैली पर कई अहम सवाल खड़े हो रहे है और अपने अधीनस्थों पर कड़ी नजर रखने का दावा करने वाले जिले के आका की कार्यशैली भी उजागर हो रही है। न जाने कितने मामलों में पुलिस ऐसे खेल-खेलती होगी और निर्दोषों को जेल भेजकर अपनी कार्यवाही से इतिश्री कर लेती होगी। ऐसे में क्राइम कन्ट्रोलिंग पर बड़े-बड़े दावे करने वाली भाजपा सरकार में भी पुलिसिया कार्यवाही रामभरोसे ही दिख रही है।
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