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Tuesday, December 5, 2017

मुद्दा राज्य के शिक्षा, शिक्षक एवं शिक्षण "व्यवस्था" एवं माननीय न्यायालय के आदेश को लागू करने का

बगहा पश्चिमी चंपारण(बिहार) दिवाकर कुमार की  रिपोर्ट

पटना - माननीय सर्वोच्च न्यायालय नें  सिविल अपील संख्या 213/13 पर सुनवाई करते हुए उसके आलोक में 26/10/16 को "समान काम के लिए समान वेतन" देने का न्यायादेश निर्णय दिया है जिससे देश भर के सभी कर्मचारियों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी है ! माo SC के उक्त आदेश को मानना देश के सभी न्यायालयों के लिए बाध्यकारी है ! कूछ राज्यों नें तो लागू भी कर दिए हैं तो कुछ प्रक्रिया में हैं जिनमें दिल्ली, पंजाब आदि राज्य प्रमुख हैं !
उक्त निर्णय के बाद सबसे पहले "आप" सरकार नें दिल्ली के लिए "समान काम समान वेतन" लागू करने की घोषणा की एवं तथाकथित अन्य सुविधाएँ भी अपने राज्य के शिक्षकों को दे रही है !
इधर अक्टूबर 2017 में माननीय उच्च न्यायालय, पटना ने भी TSUNSS गोपगुट बिहार के याचिका CWJC 703/2017 एवं अन्य शिक्षक संगठनो के समान काम समान वेतन से सम्बन्धित याचिका पर सुनवाई करते हुए माननीय SC के निर्णय के आलोक में ही "समान काम समान वेतन" का निर्णय सुनाया है ! फिर भी न्याय के साथ विकास करने वाली सुशासन सरकार इस पर अमल नही कर रही जो खेदजनक है ! इसको लेकर शिक्षकों में रोष व्याप्त है !
हालाँकि माo उच्च न्यायालय पटना नें इसके लिए 90 दिन का समय सरकार को दिया है !
बिहार में मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार की अगुवाई वाली गठबंधन की सरकार है जिसमें सम्मिलित घटक दल के रुप में भाजपा है जिसकी केन्द्र में भी सरकार है !
सरकार की यह गठबंधन स्थिति देख शिक्षक समुदाय में काफी सकरात्मक विचार उभरा था कि केन्द्र व राज्य में अनुकूल सरकार होने से सहूलियत होगी किंतु इस संदर्भ में अब तक निराशजनक स्थिति ही बनीं हुई है।
वर्तमान माननीय उपमुख्यमंत्री सह वित्तमंत्री श्री सुशील मोदी जी ने पुरवर्ती गठबंधन सरकार में विपक्ष में रहते हुए शिक्षकों के संदर्भ में महत्वूर्ण, सकरात्मक घोषणा किए थे किंतु अब सरकार में शामिल होने पर लगता है अपने वादे को भूल गए हैं ?

वही विगत गठबंधन वाली सरकार में घटक दलों के रुप में राजद, जदयू व काँग्रेस शामिल थे एवं तत्कालीन सरकार में शामिल दो प्रमुख घटक दल राजद व काँग्रेस के हाथ में क्रमशः वित्त एवं शिक्षा की बागडोर थी फिर भी शिक्षा, शिक्षक एवं शिक्षण की दशा में सुधार हेतू कोई ठोस पहल नही हुआ और अब सत्ता से दुर होने पर उन्हें भी अपने मजबूत विपक्ष होने एवं सरकार द्वारा समान वेतन देने/ लागू करने  का ख़याल आ रहा है ?

तो क्या राज्य के शिक्षकों को "समान काम के बदले समान वेतन" देने में इनकी ही आनाकानी है ?
यदि हाँ तो इसे लागू करने हेतू अपने मंत्री जी को आवश्यक, अपेक्षित दिशा निर्देश दें और यदि नही, मामला माo मुख्य मंत्री जी के हाथ में है और अंतरिम निर्णय उनको ही लेना है तो कम से कम ये मंत्री जी सार्वजनिक रुप से अपना रुख़ तो स्पष्ट करें क्योंकि इससे राज्य में शिक्षा व्यवस्था के साथ साथ सरकार के दलों की लोकप्रियता, कार्यशैली भी प्रभावित हो रही है और माननीय न्यायालय के आदेश को नही मानने पर सरकार पर प्रश्न चिन्ह भी उठ रहा है l
क्योंकि नज़र में तो यहीं है कि  जदयू के पास मुख्यमंत्री व शिक्षा विभाग का जिम्मा है तो भाजपा के पास वित्त मंत्रालय की बागडोर है जो राज्य के शिक्षा, शिक्षक, शिक्षण एवं विकास हेतू उत्तरदायी हैं किंतु केन्द्र के अनुकूल सरकार होने के बावजूद भी मामला अभी भी अटका हुआ है ! 
पर यदि ये लोग सकारात्मक रुख़ रखते हैं तो सार्वजनिक रुप से अपनें विचार/स्टैण्ड स्पष्ट करते हुए लागू करने की घोषणा करें कि ये समान काम के बदले समान वेतन देने को तैयार है !
यदि निर्णय मुख्यमंत्री जी को लेना है तो जवाबदेही उनकी ही बनें !
वैसे भी जवाबदेही मुख्यमंत्री जी की ही है क्योंकि नेतृत्व उनका ही है ! 
राज्य के नियोजित शिक्षक सरकार के सुप्रीमकोर्ट जाने वाले रुख से असंतुष्ट हैं जिसको लेकर सभी शिक्षक संगठनों नें संघर्ष मोर्चा बनाकर 31 जनवरी 2018 (माननीय न्यायालय द्वारा देय 90 दिन की अवधि) तक समान काम समान वेतन लागू नही होने की स्थिति में आगामी 01 फरवरी से
शिक्षण व मैट्रिक इण्टर परीक्षा बहिष्कार करते हुए हड़ताल की घोषणा कर दी है !
शिक्षक अब पुराने व लेटलतीफी वाले "सेवा शर्त" को भूल कर "समान काम समान वेतन" के इंतजार में हैं !

सरकार का प्रमुख स्लोगन है : - 

"सुशासन की सरकार" 
"न्याय के साथ विकास" !

अब देखना दिलचस्प हैं सुशासन सरकार में शिक्षकों को न्याय कब मिलता है ?

दुसरी समस्या RTE के मानदंडों के अनुरूप "शिक्षक पात्रता परीक्षा" TET उत्तीर्ण नियोजित शिक्षकों का है जो सरकार द्वारा पूर्व में अंक एवं प्रमाण पत्र के आधार पर की गई बहाली से हुई किरकिरी को कम किए एवं शिक्षा स्तर के गिरते ग्राफ को पुनः वापिस लाने में कुछ हद तक कारगर साबित हुए हैं (2015 हड़ताल के दौरान भूतपूर्व शिक्षा मंत्री PK शाही जी का वक्तव्य) उन पात्रताधारी शिक्षकों को ना तो सम्मानजनक वेतन ही मिल रहा है और ना ही नियमित शिक्षकों के भाँति अन्य सुविधाएँ ही मिल पा रहीं हैं जबकि ये RTE के मानक को पूर्ण करते हैं !
यह भावनात्मक माँग विचार पिछले दिनों पडोसी राज्य उत्तर प्रदेश में सहायक शिक्षक पद हेतू हुए उथल पुथल, माननीय न्यायालय के आदेश के बाद अब बिहार में भी TET शिक्षकों एवं शिक्षक संघों में चर्चा का विषय है !

ज्ञातव्य है कि सरकार नें शिक्षकों को कई वर्गों में बाँट रखा है ! 

राज्य के सभी कोटि के नियोजित शिक्षक समान काम समान वेतन सहित अपने विभिन्न अधिकार माँग को लेकर लगातार सरकार से माँग करते आ रहें हैं लेकिन सरकार की ढुलमुल, टालमटोल रवैया के चलते शिक्षकों को वाजिब सम्मानजक वेतन व सुविधाएँ नही मिल पा रहीं हैं !
 बिहार सरकार नें माo न्यायालयों के निर्णय को लागू करने के लिए, शिक्षकों के सेवा शर्त के लिए कमिटी का गठन किया है जो अध्ययन करेगी ?
पर अभी पिछली सरकार के समय में गठित कमिटी नें ही अपना अध्ययन रिपोर्ट अभी तक सरकार को नही सौंपा है जो घोर निराशाजनक व चिंता का विषय है !
सरकार कमिटी कमिटी खेल रही है और शिक्षक इंतजार में हैं कि बिहार सरकार माननीय उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय के महत्वपूर्ण निर्णय "समान काम- समान वेतन" को पूर्णरूपेण कब लागू करती है ?

शिक्षक अबकी बार सरकार से आरपार के मूड में हैं !
सुनिल कुमार "राउत"
(जिला सोशल मीडिया प्रभारी)
TET STET उत्तीर्ण नियोजित शिक्षक संघ, बिहार (गोपगुट) पश्चिम चम्पारण

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