रिपोर्ट शिव विशाल पाण्डेय IBN24x7 News
इलाहाबाद - जैसे-जैसे निकाय चुनाव की तिथि नजदीक आती जा रही है। वैसे-वैसे पार्षद प्रत्याशियों में कार्यालय खोलने की होड़ बढ़ती जा रही है। हर मोहल्ले में हर दिन खुल रहे खर्चीले चुनाव कार्यालय पार्षद
प्रत्याशियों के लिए स्टेटस सिंबल बने हैं। कई प्रत्याशियों ने तो अपने-अपने क्षेत्र में एक नहीं कई कार्यालय खोल दिए हैं। एक-दूसरे की देखादेखी अन्य प्रत्याशी भी कार्यालय खोलने की व्यवस्था करने में लगे हैं।
राजनीतिक दलों के अधिकृत महापौर प्रत्याशियों ने अपने मुख्य कार्यालयों का धूमधाम से उद्घाटन कराया। साथ ही मोहल्लों की गलियों में अब पार्षद प्रत्याशी अपने कार्यालय बना रहे हैं। किसी ने समर्थक के घर के कमरे तो किसी ने खाली पड़े गोदाम और दुकान पर अपने बोर्ड लगा दिए हैं। दिनभर एक खास व्यक्ति की उपस्थिति के साथ प्रत्याशी के भ्रमण और अन्य चुनाव संबंधी जानकारियों के लिए खुले पार्षद प्रत्याशियों के कार्यालयों में देर रात तक लोगों का जमावड़ा रहता है।
चुनाव प्रचार के साथ क्षेत्र में दमखम दिखाने की होड़ में खोले जा रहे पार्षद कार्यालयों में उन लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार भी मिल गया है, जो फिलहाल खाली हैं। इसमें प्रत्याशियों को भी दोहरा लाभ नजर आ रहा है। कार्यालय में बैठने वाले को कुछ सौ रुपये हर दिन देकर उसके और उनके जानने वालों के वोट मिलने का भरोसा प्रत्याशियों को क्षेत्र में एक नहीं कई कार्यालय खोलने को उत्साहित कर रहा है। चाय-पानी, भोजन के साथ प्रत्याशी का खास होने का प्रचार पाने को इस काम को करने वाले भी कम नहीं हैं। कई चुनाव कार्यालयों में एक नहीं बल्कि दो या तीन लोग अलग-अलग काम संभाले हैं।
खर्च भी कम नहीं फिर भी गम नहीं :
जानकारों के मुताबिक एक सामान्य चुनाव कार्यालय खोलने का खर्च तीन हजार रुपये प्रतिदिन से कम नहीं है। जहां कार्यालय खुला उसका किराया छोड़ दें तो गद्दे-चादर का खर्च हर दिन 500 रुपये, सौ कप चाय का खर्च 500 रुपये, सौ लोगों के लिए पूड़ी-कचौड़ी, सब्जी 2000 के साथ बोतल वाला पानी भी खरीदना पड़ रहा है। एक कार्यालय का यह मामूली खर्च आकलन तक ही, खर्च इससे अधिक ही किया जा रहा है। अधिकांश पार्षद प्रत्याशी शायद ही इस खर्च का ब्यौरा अपने चुनाव खर्च में दें। जिनके एक से अधिक अन्य लोगों से अधिक सुविधायुक्त कार्यालय हैं, उनके बारे में हर वार्ड में चर्चा है
इलाहाबाद - जैसे-जैसे निकाय चुनाव की तिथि नजदीक आती जा रही है। वैसे-वैसे पार्षद प्रत्याशियों में कार्यालय खोलने की होड़ बढ़ती जा रही है। हर मोहल्ले में हर दिन खुल रहे खर्चीले चुनाव कार्यालय पार्षद
प्रत्याशियों के लिए स्टेटस सिंबल बने हैं। कई प्रत्याशियों ने तो अपने-अपने क्षेत्र में एक नहीं कई कार्यालय खोल दिए हैं। एक-दूसरे की देखादेखी अन्य प्रत्याशी भी कार्यालय खोलने की व्यवस्था करने में लगे हैं।
राजनीतिक दलों के अधिकृत महापौर प्रत्याशियों ने अपने मुख्य कार्यालयों का धूमधाम से उद्घाटन कराया। साथ ही मोहल्लों की गलियों में अब पार्षद प्रत्याशी अपने कार्यालय बना रहे हैं। किसी ने समर्थक के घर के कमरे तो किसी ने खाली पड़े गोदाम और दुकान पर अपने बोर्ड लगा दिए हैं। दिनभर एक खास व्यक्ति की उपस्थिति के साथ प्रत्याशी के भ्रमण और अन्य चुनाव संबंधी जानकारियों के लिए खुले पार्षद प्रत्याशियों के कार्यालयों में देर रात तक लोगों का जमावड़ा रहता है।
चुनाव प्रचार के साथ क्षेत्र में दमखम दिखाने की होड़ में खोले जा रहे पार्षद कार्यालयों में उन लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार भी मिल गया है, जो फिलहाल खाली हैं। इसमें प्रत्याशियों को भी दोहरा लाभ नजर आ रहा है। कार्यालय में बैठने वाले को कुछ सौ रुपये हर दिन देकर उसके और उनके जानने वालों के वोट मिलने का भरोसा प्रत्याशियों को क्षेत्र में एक नहीं कई कार्यालय खोलने को उत्साहित कर रहा है। चाय-पानी, भोजन के साथ प्रत्याशी का खास होने का प्रचार पाने को इस काम को करने वाले भी कम नहीं हैं। कई चुनाव कार्यालयों में एक नहीं बल्कि दो या तीन लोग अलग-अलग काम संभाले हैं।
खर्च भी कम नहीं फिर भी गम नहीं :
जानकारों के मुताबिक एक सामान्य चुनाव कार्यालय खोलने का खर्च तीन हजार रुपये प्रतिदिन से कम नहीं है। जहां कार्यालय खुला उसका किराया छोड़ दें तो गद्दे-चादर का खर्च हर दिन 500 रुपये, सौ कप चाय का खर्च 500 रुपये, सौ लोगों के लिए पूड़ी-कचौड़ी, सब्जी 2000 के साथ बोतल वाला पानी भी खरीदना पड़ रहा है। एक कार्यालय का यह मामूली खर्च आकलन तक ही, खर्च इससे अधिक ही किया जा रहा है। अधिकांश पार्षद प्रत्याशी शायद ही इस खर्च का ब्यौरा अपने चुनाव खर्च में दें। जिनके एक से अधिक अन्य लोगों से अधिक सुविधायुक्त कार्यालय हैं, उनके बारे में हर वार्ड में चर्चा है
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