Ibn24x7news बगहा पश्चिमी चंपारण(बिहार) दिवाकर कुमार की रिपोर्ट
बगहा:- प.च बगहा अनुमंडल दो के सन फ्लावर चिल्ड्रेन एकेडमी के प्रधानाचार्य एवं नैतिक जागरण मंच के सचिव निप्पू कुमार पाठक ने सन्देश दिए कि। शिक्षक समाज का भगवान शायद इसलिए कि उसके हाथों में निर्माण और विनाश दोनों है। वह स्रष्टा भी है और संहार करता भी । क्योंकि सम्मान पाने पर जहां एक और शिक्षक एक सुंदर समाज का निर्माण करता है ,वहीं शिक्षक प्रताड़ित हो ने पर समाज का विनाश भी करता है। सिकंदर के गुरु अरस्तु अवर चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु चाणक्य साक्षात इस बात के उदाहरण है जहां सिकंदर गुरु के आशीर्वाद से विश्व विजेता बना वही चाणक्य ने एक साधारण सैनिक चंद्रगुप्त की सहायता से नंदवंश का विनाश करवा डाला । शिक्षक के प्रताड़ना से समाज अंधकार के गर्त में उसी तरह डूब जाता है जैसे तूफान आगोश मे समुद्र में जहाज को डुब जाता है ।जी हां मैं बात कर रहा हूं वर्तमान शिक्षक और शिक्षा व्यवस्था पर, इस उम्मीद और विश्वास के साथ कि शायद मेरे इस निवेदन को वर्तमान चंद शिक्षक जो मार्ग से भटक गए हैं अपने को सुमार्ग पर ला सकेंगे ।वर्तमान शिक्षक निश्चित तौर पर अभाव से जूझ रहा है लेकिन शिक्षक केवल वेतनभोगी नहीं वह तो समाज का निर्माता है। चाणक्य के शब्दों में शिक्षक कभी असमर्थ नहीं होता, शिक्षक लाचार नहीं होता, विवश नहीं होता ।उसके पास तो देने के लिए विशाल भंडार है ।वह दाता है ,निर्माता है ।परंतु वर्तमान समय में शिक्षक के साथ हो रहे अपमान, प्रताड़ना चंद्र शिक्षकों के कुकृत्य का परिणाम है। वर्तमान के कुछ शिक्षक अपने गौरव गरिमा को भुलाकर वाचाल और भौतिकवादी लिप्सा का आदी हो गए हैं। वह कर्म विमुख होकर अपने आपको श्रेष्ठ बताने में जुटा हुआ है ।वह अपने किए गए कार्यों के लिए पुरस्कार नहीं मेहनत नामा मांगता फिर रहा है। इसीलिए चौक चौराहे पर या जब भी अवसर मिलता है अपने दीनता का उजागर करने में हिचकता नहीं । पर हमें इस घटना पर ध्यान देना चाहिए और सीख भी लेनी चाहिए जो हाल ही में घटित हुई है ।उत्तर प्रदेश के एक शिक्षक के विद्यालय से स्थानांतरित हो जाने पर उस शिक्षक के छात्र किस तरफ फूट-फूट कर अपने शिक्षक के लिए रो रहे हैं । दूसरी ओर शिक्षकों की कारगुजारी तब नजर आती है जब बच्चों से यह पूछा जाता है कि आपके देश के राष्ट्रपति कौन हैं बच्चा प्रधानमंत्री का नाम बताता है । दुर्भाग्य की बात यह है कि चंद्र शिक्षक तभी कोई काम काम करना चाहते हैं जब उनहे कमीशन के तौर पर कुछ राशि मिले या उससे उस काम में लाभ दिखाई देता हो ।शायद ऐसे शिक्षकों का मन ऐसे शिक्षकों का मन मूल विषय वस्तु से ज्यादा विषयांतर विषयों में ज्यादा लगता है। ऐसा मुझे तब लगा जब बच्चों की पढ़ाई से जुड़े हुए कार्यक्रम के दौरान भिन्न-भिन्न विद्यालयों के प्राचार्यों व संचालकों से निवेदन करने का मौका मिला । सम्मानित शिक्षकों से यह निवेदन किया गया कि बच्चों को सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता परीक्षा हेतु फार्म भरवाए ।तब कई शिक्षकों ने कार्यो का बहाना कर या बच्चे मन नहीं दे रहे हैं ऐसा बता कर अपना पल्ला झाड़ते हुए नजर आए । शिक्षकों की अभी गुजारिश की गई थी कि कम से कम आप अपना ही ₹500 खर्च कर विद्यालय के कम से कम 10 बच्चों को प्रतियोगिता परीक्षा में भागीदारी दिलवाएं ऐसा सुनते ही शिक्षकों के जैसे प्राण निकल गए। लेकिन दुर्भाग्य है कि शिक्षकों को उसमें कोई लाभ दिखाई न दिया। बच्चों को प्रेरित करना शिक्षक का दायित्व है। शिक्षक ही प्रणेता है । शिक्षक बनना केवल पैसा कमाना नहीं शिक्षक बनना आत्म गौरव की बात है।जैसा कि ऊपर शिक्षक के बारे में बहुत कुछ कहा गया है। इसलिए कहना पड़ रहा है कि जब एक शिक्षक ने वार्तालाप के दौरान यह बात कही कि बगहा अनुमंडल के अंतर्गत इतने सारे विद्यालय हैं फिर भी केवल 1400 बच्चे ही परीक्षा मे भाग ले रहे हैं। शिक्षक का नाम मैं नहीं रखना चाहता लेकिन इतना जरुर कहना चाहता हूं कि वे शिक्षक एक कुशल विद्यालय के संचालक है और स्वयं उन्होंने अपने विद्यालय से 400 बच्चों की प्रतिभागिता सुनिश्चित किए। मैं सरकारी शिक्षकों के तौर पर कार्यरत शिक्षक श्री क्यूम अंसारी, श्री रविंदर गिरी तथा श्री उमेश सिंह जैसे शिक्षकों की ओर आपका ध्यान आकृष्ट कराना चाहता हूं। जिन्होंने मेधा मूल्यांकन प्रतियोगिता का परीक्षा में इतनी रुचि ली वे बहुत ही कम समय में यानी दो-तीन दिनों में ही बच्चों का फॉर्म भरवाकर उनकी प्रतिभागिता निश्चित कर दिए। ये वें शिक्षक है जो बच्चों के विकास के लिए हर पल पर तैयार रहते हैं। वें अपने पास से भी पैसा देने में नहीं हिचकते ।समाज में ऐसे शिक्षकों की कमी नहीं है ।अपितु अपने मार्ग से विचलित कुछ चंद शिक्षकों से यह निवेदन जरूर है कि आप शिक्षक के पद पर रहकर शिक्षक के गौरव गरिमा को धूमिल न करें। आप वाचाल नहीं महाकाल हैं।आप समाज सुधारक हैं आप करता है, आप राष्ट्र निर्माता हैं, बच्चों के भाग्य विधाता है। अंत में मैं यही निवेदन करूंगा कि आपके समक्ष निवेदन करते समय अगर किसी शब्द से आप का दिल दुखा है ।तो क्षमा चाहता हूं यह निवेदन आपसे आपके सच्चे कर्मों का ज्ञान कराने के लिए है ।न कि आपका दिल दुखाने के लिए ।इसी प्रार्थना के साथ एक बार पुनः आप का अभिनंदन करते हुए आपके समक्ष जय सीताराम।
बगहा:- प.च बगहा अनुमंडल दो के सन फ्लावर चिल्ड्रेन एकेडमी के प्रधानाचार्य एवं नैतिक जागरण मंच के सचिव निप्पू कुमार पाठक ने सन्देश दिए कि। शिक्षक समाज का भगवान शायद इसलिए कि उसके हाथों में निर्माण और विनाश दोनों है। वह स्रष्टा भी है और संहार करता भी । क्योंकि सम्मान पाने पर जहां एक और शिक्षक एक सुंदर समाज का निर्माण करता है ,वहीं शिक्षक प्रताड़ित हो ने पर समाज का विनाश भी करता है। सिकंदर के गुरु अरस्तु अवर चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु चाणक्य साक्षात इस बात के उदाहरण है जहां सिकंदर गुरु के आशीर्वाद से विश्व विजेता बना वही चाणक्य ने एक साधारण सैनिक चंद्रगुप्त की सहायता से नंदवंश का विनाश करवा डाला । शिक्षक के प्रताड़ना से समाज अंधकार के गर्त में उसी तरह डूब जाता है जैसे तूफान आगोश मे समुद्र में जहाज को डुब जाता है ।जी हां मैं बात कर रहा हूं वर्तमान शिक्षक और शिक्षा व्यवस्था पर, इस उम्मीद और विश्वास के साथ कि शायद मेरे इस निवेदन को वर्तमान चंद शिक्षक जो मार्ग से भटक गए हैं अपने को सुमार्ग पर ला सकेंगे ।वर्तमान शिक्षक निश्चित तौर पर अभाव से जूझ रहा है लेकिन शिक्षक केवल वेतनभोगी नहीं वह तो समाज का निर्माता है। चाणक्य के शब्दों में शिक्षक कभी असमर्थ नहीं होता, शिक्षक लाचार नहीं होता, विवश नहीं होता ।उसके पास तो देने के लिए विशाल भंडार है ।वह दाता है ,निर्माता है ।परंतु वर्तमान समय में शिक्षक के साथ हो रहे अपमान, प्रताड़ना चंद्र शिक्षकों के कुकृत्य का परिणाम है। वर्तमान के कुछ शिक्षक अपने गौरव गरिमा को भुलाकर वाचाल और भौतिकवादी लिप्सा का आदी हो गए हैं। वह कर्म विमुख होकर अपने आपको श्रेष्ठ बताने में जुटा हुआ है ।वह अपने किए गए कार्यों के लिए पुरस्कार नहीं मेहनत नामा मांगता फिर रहा है। इसीलिए चौक चौराहे पर या जब भी अवसर मिलता है अपने दीनता का उजागर करने में हिचकता नहीं । पर हमें इस घटना पर ध्यान देना चाहिए और सीख भी लेनी चाहिए जो हाल ही में घटित हुई है ।उत्तर प्रदेश के एक शिक्षक के विद्यालय से स्थानांतरित हो जाने पर उस शिक्षक के छात्र किस तरफ फूट-फूट कर अपने शिक्षक के लिए रो रहे हैं । दूसरी ओर शिक्षकों की कारगुजारी तब नजर आती है जब बच्चों से यह पूछा जाता है कि आपके देश के राष्ट्रपति कौन हैं बच्चा प्रधानमंत्री का नाम बताता है । दुर्भाग्य की बात यह है कि चंद्र शिक्षक तभी कोई काम काम करना चाहते हैं जब उनहे कमीशन के तौर पर कुछ राशि मिले या उससे उस काम में लाभ दिखाई देता हो ।शायद ऐसे शिक्षकों का मन ऐसे शिक्षकों का मन मूल विषय वस्तु से ज्यादा विषयांतर विषयों में ज्यादा लगता है। ऐसा मुझे तब लगा जब बच्चों की पढ़ाई से जुड़े हुए कार्यक्रम के दौरान भिन्न-भिन्न विद्यालयों के प्राचार्यों व संचालकों से निवेदन करने का मौका मिला । सम्मानित शिक्षकों से यह निवेदन किया गया कि बच्चों को सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता परीक्षा हेतु फार्म भरवाए ।तब कई शिक्षकों ने कार्यो का बहाना कर या बच्चे मन नहीं दे रहे हैं ऐसा बता कर अपना पल्ला झाड़ते हुए नजर आए । शिक्षकों की अभी गुजारिश की गई थी कि कम से कम आप अपना ही ₹500 खर्च कर विद्यालय के कम से कम 10 बच्चों को प्रतियोगिता परीक्षा में भागीदारी दिलवाएं ऐसा सुनते ही शिक्षकों के जैसे प्राण निकल गए। लेकिन दुर्भाग्य है कि शिक्षकों को उसमें कोई लाभ दिखाई न दिया। बच्चों को प्रेरित करना शिक्षक का दायित्व है। शिक्षक ही प्रणेता है । शिक्षक बनना केवल पैसा कमाना नहीं शिक्षक बनना आत्म गौरव की बात है।जैसा कि ऊपर शिक्षक के बारे में बहुत कुछ कहा गया है। इसलिए कहना पड़ रहा है कि जब एक शिक्षक ने वार्तालाप के दौरान यह बात कही कि बगहा अनुमंडल के अंतर्गत इतने सारे विद्यालय हैं फिर भी केवल 1400 बच्चे ही परीक्षा मे भाग ले रहे हैं। शिक्षक का नाम मैं नहीं रखना चाहता लेकिन इतना जरुर कहना चाहता हूं कि वे शिक्षक एक कुशल विद्यालय के संचालक है और स्वयं उन्होंने अपने विद्यालय से 400 बच्चों की प्रतिभागिता सुनिश्चित किए। मैं सरकारी शिक्षकों के तौर पर कार्यरत शिक्षक श्री क्यूम अंसारी, श्री रविंदर गिरी तथा श्री उमेश सिंह जैसे शिक्षकों की ओर आपका ध्यान आकृष्ट कराना चाहता हूं। जिन्होंने मेधा मूल्यांकन प्रतियोगिता का परीक्षा में इतनी रुचि ली वे बहुत ही कम समय में यानी दो-तीन दिनों में ही बच्चों का फॉर्म भरवाकर उनकी प्रतिभागिता निश्चित कर दिए। ये वें शिक्षक है जो बच्चों के विकास के लिए हर पल पर तैयार रहते हैं। वें अपने पास से भी पैसा देने में नहीं हिचकते ।समाज में ऐसे शिक्षकों की कमी नहीं है ।अपितु अपने मार्ग से विचलित कुछ चंद शिक्षकों से यह निवेदन जरूर है कि आप शिक्षक के पद पर रहकर शिक्षक के गौरव गरिमा को धूमिल न करें। आप वाचाल नहीं महाकाल हैं।आप समाज सुधारक हैं आप करता है, आप राष्ट्र निर्माता हैं, बच्चों के भाग्य विधाता है। अंत में मैं यही निवेदन करूंगा कि आपके समक्ष निवेदन करते समय अगर किसी शब्द से आप का दिल दुखा है ।तो क्षमा चाहता हूं यह निवेदन आपसे आपके सच्चे कर्मों का ज्ञान कराने के लिए है ।न कि आपका दिल दुखाने के लिए ।इसी प्रार्थना के साथ एक बार पुनः आप का अभिनंदन करते हुए आपके समक्ष जय सीताराम।
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